The Shodashi Diaries
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हरिप्रियानुजां वन्दे देवीं त्रिपुरसुन्दरीम् ॥७॥
बिंदु त्रिकोणव सुकोण दशारयुग्म् मन्वस्त्रनागदल संयुत षोडशारम्।
॥ इति त्रिपुरसुन्दर्याद्वादशश्लोकीस्तुतिः सम्पूर्णं ॥
ह्रींमन्त्रान्तैस्त्रिकूटैः स्थिरतरमतिभिर्धार्यमाणां ज्वलन्तीं
ह्रीं ह स क ल ह्रीं ह स क ह ल ह्रीं स क ल ह्रीं
चक्रेऽन्तर्दश-कोणकेऽति-विमले नाम्ना च रक्षा-करे ।
सर्वज्ञादिभिरिनदु-कान्ति-धवला कालाभिरारक्षिते
ब्रह्माण्डादिकटाहान्तं जगदद्यापि दृश्यते more info ॥६॥
ह्रीङ्काराम्भोधिलक्ष्मीं हिमगिरितनयामीश्वरीमीश्वराणां
ह्रीङ्कारं परमं जपद्भिरनिशं मित्रेश-नाथादिभिः
॥ अथ श्रीत्रिपुरसुन्दरी अपराध क्षमापण स्तोत्रं ॥
ह्रीं ह्रीं ह्रीमित्यजस्रं हृदयसरसिजे भावयेऽहं भवानीम् ॥११॥
॥ ॐ क ए ई ल ह्रीं ह स क ह ल ह्रीं स क ल ह्रीं श्रीं ॥
स्थेमानं प्रापयन्ती निजगुणविभवैः सर्वथा व्याप्य विश्वम् ।